Tuesday, March 17, 2015

तेरे इस शहर के बच्चे मुझे बच्चे नहीं लगते

उतने मासूम नहीं लगते,उतने कच्चे नहीं लगते
तेरे इस शहर के बच्चे मुझे बच्चे नहीं लगते

जहाँ लगते थे मेले कभी गर्मी की छुट्टी में
उन जगहों को अब झूले अच्छे नहीं लगते

वो सिक्के जो बोए थे कभी नाना के बाग़ में
पूरी जेबें भरे नोट भी उन सिक्को से नहीं लगते

जो लोग दूसरों की गलतियों का तमाशा बना दे
अपने बच्चो के गुनाह माफ़ करे तो सच्चे नहीं लगते

मेरे शहर में लोग ऐसे ही थे जेसे इस शहर में है
लाख कोशिश करू ये लोग मेरे मन से नहीं लगते ...

वहां भी ऐसे घर थे, बाग़ थे दिन और रात थे
परदेस में ये सब भी अपने वतन से नहीं लगते

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

Wednesday, March 4, 2015

दम लगा के हईशा :तुमसे मिले दिल में उठा दर्द करारा (dam laga ke haisha :movie review)

छोटा सा, शहर गंगा का किनारा, कुछ गलियां  इन गलियों से ही अन्दर की तरफ जाती और छोटी गलियां जिनके दोनों तरफ कुछ घर, बड़ी गलियों में कुछ दुकानें और इन दुकानों में कुमार शानू ...नहीं कुमार शानू खुद नहीं पर उनकी आवाज़ ...और हमारे साथ उस आवाज़ को सुनता आयुष्मान खुराना ...मतलब फिल्म का नायक प्रेम ...और गाना एकदम जबर "तू मेरे इम्तेहानो में" सच कहूँ सुनकर ऐसा  लगा जेसे “अरे कितने दिनों से ये मीठी आवाज़ नहीं सुनी थी , ऐसा  लगा जेसे ओह यार हमें पता भी नहीं चला की हमने इतने दिनों से क्या खो दिया था जो इस फिल्म ने दे दिया ....
मुझे बचपन याद आ गया केसेट रिकार्डिंग  की दुकानें याद आ गई वो लिस्ट याद आ गई जो हम केसेट वाले भैया को देकर आते है गाने भरने के लिए ....दिल का आलम मैं क्या बताऊँ तुम्हे एक चेहरे ने बहुत प्यार से देखा मुझे...., मेरा दिल भी कितना पागल है ...,एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा ,,,,और भी न जाने क्या...

एक बडबोले शाखा बाबु जो खुद शादी करके मजे में है और प्रेम को सारे कुंवारों के महान कामों के उदहारण देते हैं   ,एक इंजीनियरिंग करके आया दोस्त जो तब तक पीछा नहीं छोड़ता जब तक बिचारे दसवी फेल प्रेम को मिठाई नहीं खिला देता अपने पास होने की,एक बुआ एक माँ , कुछ इधर उधर के लोग और एक कद्दावर मोटी बीवी जो सच में सारी छुईमुई हीरोइन वाली छवि को ध्वस्त करती है ....

प्रेम के पिताजी का कहना “ अरे कित्ती बार कहा है ये हैडफ़ोन लगाकर गाने न भरा कर  बीमार हो जाएगा , या दूकान में कुत्ता न घुस जाए ध्यान राखिओ”...जेसे उस ज़माने में लिए जाता है ..ऐसा लगता है यही सब तो होता था बिलकुल ऐसा ही तो सेम टू  सेम ....स्कूटर पर पीछे बैठी बीवी की चप्पल गिर जाना ,ससुराल से प्रेम का भूखा आ जाना और रस्ते में कचोरियाँ खाना , एक सिगरेट का दम भरना और जब संध्या ने कहा आप सिगरेट पीते हो तो बड़ा अकड़  के कहना "हां शराब भी पीता हु डरता थोड़ी हु किसी से" ...फिर धीरे से कहना "अच्छा ये बात घर में मत बताना" ...पति पत्नी के कमरे में जाने पर सास और बुआ का मुह दबाकर हसना ....पति का पत्नी से कहना अपनी पढाई का रोब न झाड़ो ....सब कुछ असा लगता है अरे एक दम सही ऐसा ही तो होता था डिक्टो .....

एक मिनट मुझे लग रहा है लिखते लिखते इतना खो न जाऊ की इस फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट ही लिख डालू ....तो कहानी बताना बंद करती हु वो आप लोग खुद देख आइयेगा पर इतना कह सकती हु ये फिल्म  सच में लम्बे समय के बाद प्यार की महक लेकर आई है ...ये मेट्रो वाला हाई फंडू प्यार नहीं है ,न गाव वाला दबा छुपा डरा घूंघट वाला प्यार ये ऐसा प्यार हे जो शादी से शुरू होता है दिखावे से त्रस्त  आदमी की मजबूरी से गुजरता हुआ तलाक तक जाता है और फिर साथ रहने की मजबूरी से फिर शुरू होकर , अपनेपन ,सपोर्ट की सीढियां चढ़ता हुआ एकदम्मी सच्चे सच्चे पक्के ,गंगा मैया की कसम टाइप प्यार तक जाता है ....

अच्छा वापस से कहानी बताना बंद करती हूँ... हाँ तो फिल्म देखते हुए बार बार लगा जैसे ये फिल्म दिल के उस कोने को छूती है जिसे छूने वाली लिस्ट में बहुत ही कम फिल्मों का नाम लिखा जा सकता है ... एक ऐसे नायक नायिका की कहानी जो अपनी अपनी कमजोरियां जानते हैं लड़का जानता  है वो कम पढ़ा लिखा है लड़की जानती है वो मोटी है सब कुछ परफेक्ट......
ऐसी फिल्म जिसे देखते हुए लगता नहीं की हम कही दूर बेठे हैं सब कुछ अपने आस पास होता दीखता है ,छोटी छोटी चालाकियां,चुहलबाजियाँ ,सब अपना सा लगता है ,एक सीधा सा लड़का जो अपने माँ बाप की बहु को रोक लेने की चालाकियों का खुलासा करता है ,एक पढ़ी लिखी लड़की जो चांटा मरने से भी नहीं डरती और जरुरत पड़ने पर साथ भी निभाती है प्यार करती है तो जताती भी है ...पर मॉड टाइप नहीं है भोली है पर आत्मसम्मान वाली है ...सब कुछ खुद में से गुजरता हुआ सा लगता है ...पता ही नहीं चलता फिल्म गुजर रही है या हम फिल्म में से होकर गुज़र गए....

कुछ रूहानी नहीं ,कुछ कानफोडू नहीं,कोई ड्रामा नहीं ,कोई धमाल नहीं,शादी के ताम झाम नहीं सब कुछ सिंपल और यही चीज़ इस फिल्म को सबसे अलग बनाती है साथ में एक सोशल मेसेज भी की खूबसूरती सिर्फ शरीर से नहीं होती और प्यार इस सब बहुत ऊपर की चीज़ है ..पर कही भी ये मेसेज थोपा हुआ नहीं लगता क्यूंकि इसे किसी आदर्शवादी ढंग से नहीं दिखाया धीरे से बीज बोया गया धीरे धीरे फलने दिया गया ...कोई ज्ञान नहीं आराम से पनपता हुआ प्यार ....

आयुष्मान और भूमि दोनों की एक्टिंग जबरजस्त ,सारे चरित्र अभिनेता अभिनेत्री या साइड एक्टर्स इतनी स्वाभाविक एक्टिंग करते हुए दीखते हैं जेसे कोई दम नहीं लगाया गया हो सब उनकी खुद की भावनाएं है ... ये फिल्म चोपड़ा केम्प ने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे जेसे बड़े केनवास पर नहीं बनाई पर यकीन मानिये इसके रंग उतने ही बेहतरीन है ...राइटर ने बारीक बारीक चीज़ों का ध्यान रखा है और देखकर असा बिलकुल नहीं लगता जेसे राइटर कोई हाई फंडू पेंटिंग बना रहा था ऐसा लगता है जैसे गावों में तीज त्योहारों पर बनाया हुआ मांडना है जिसमे हर चीज सही जगह पर होना ही उसे सबसे बेहतरीन बनाता है ....और कुमार सानु के गाने इस मांडने को बनाते हुए गए जाने वाले लोकगीत ...

फिल्म के लास्ट में एक गाना है तुमसे मिले दिल में उठा दर्द करारा , शूटिंग कपडे सब देखकर लगता है हम पुरानी (ज्यादा पुरानी  नहीं गोविंदा वाली ) फिल्मों के दौर में हैं....और सबसे बड़ी बात फिल्म जब ख़तम होती है तो लगता है अरे ये खत्म क्यों हो गई और बहार निकलते ही पहले शब्द इसे तो एक बार और देखूंगी ...अरे असा नहीं की मुझे समझ नहीं आई एक बार में J बस ये वो फिल्म है जिसे मैं बार बार देख सकती हूँ...

 हाँ बस जब फिल्म देखने गई तब ये दुःख जरूर हुआ की यशराज ने इस फिल्म का थोडा और प्रमोशन क्यों नहीं किया और अच्छे पोस्टर्स क्यों नहीं बनवाए क्यूंकि इस फिल्म को तो सिर्फ डायलोग ,सिर्फ आस पास की घटनाओं के लिए भी देखा जा सकता है ....उस दिन थिएटर खाली थे पर फिल्म के चलने की खबर से में खुश हूँ कुछ फिल्में माउथ पब्लिसिटी से ही चमकती है ....
 

अरे हाँ एक बात और भूमि इसमें सच में प्यारी लगी है 

(रिव्यू कैसा लगा बताइयेगा ):)

Friday, January 30, 2015

प्यार सच में पागल बना देता होगा न ? पता नहीं

मैं हमेशा से तुम्हे लिखना चाहती थी और  लिखना चाहती थी खुद को. लिखते लिखते जी लेना चाहती थी पर न जाने क्यों लिखते लिखते खो जाना इतना आसान नहीं , मैं ज़हर लिखना चाहती हु ऐसा ज़हर जो लिखते लिखते सूज गई उँगलियों में उतर आए , लिखने वाले को खबर ही न हो उसकी खुद की कलम अब उसे छलनी करने लगी है ...स्याही खून में घुलकर उसे नस नस तक पंहुचा रही है और लिखने वाला दिन ,दिन ऐसे मर रहा है की उसे खुद को भी असर पता न चले ...
मैं उस लड़की की कहानी लिखना चाहती हूँ जिसने कभी कुछ ख़ास बुरा नहीं किया पर बादल हमेशा उसे सिर्फ इसलिए प्यासा छोड़कर चले गए क्योंकि उसने कुछ ख़ास बुरा नहीं नहीं किया न कुछ ख़ास अच्छा किया ....जो खो गई इस दुनिया में क्योंकि उसने वो किया जो सब चाहते थे वो नहीं किया वो खुद चाहती थी ...वो प्यासी  रह गई क्योंकि वो प्यासी होने का ढिंढोरा न पीट सकी ...बस अपनी बारी का इंतज़ार करती रही ......

मैं हमेशा से कहानी लिखना चाहती थी उस लड़के की जिसे दुःख है की उसने प्रेम नहीं किया बस विवाह किया और अब वो इस बात का बदला सारी दुनिया से ले लेना चाहता है ...जता देना चाहता है  सारी दुनिया को की वो भी प्रेम की पींगे भरना चाहता था पर इन सारे लोगो की वजह से वो ये नहीं कर पाया ...ऐसा लड़का जो अपनी हर भूल का बदला अपनी ब्याहता से ले लेना चाहता है ...जैसे कह रहा हो तुम न होती तो मैं कहीं ज्यादा सुखी होता , या तुम न होती तो मैं भी किसी के प्रेम में सारी दुनिया से लड़ जाता पर अब कैसे लडू...तुम जो आ गई .....


मुझे मेरी कहानी में हमेशा से एक खुश लड़की चाहिए थी जो आंसू न बहाए ,जरा हिम्मती सी हो मैंने ऐसी  लड़की तो लिख दी पर राज़ की बात तो ये है की लिखने वाले जादूगर हुआ करते हैं  अरे नहीं नहीं जादूगर नहीं तांत्रिक जेसे कुछ ...सुना होगा न की तांत्रिक को अपना परिवार नहीं रखना चाहिए क्योंकि वो अगर किसी बुरी बीमारी या आत्मा का साया किसी पर से उतारते है तो तांत्रिक के अपने घर के किसी आदमी पर असर पड़ता है ...हम लिखने वालो के साथ भी शायद कुछ ऐसा ही होता है हम किसी खुश लड़की को ऐसे ही नहीं लिख सकते उसकी आँखों में चमक ,दिल में ख़ुशी डालने के लिए हमें अपनी आँखों में उसके आंसू लेने होते हैं ,अपने दिल की खुशिया निचोड़कर उस केरेक्टर में दाल देनी होती है ...

मैं इश्क लिखना चाहती हूँ ,इतना इश्क की एक दिन तुम्हे लगे की मैं तुम्हारे इश्क में पागल हो गई हूँ मैं तुम्हारे इश्क को गूगल ड्राइव जेसा एक फोल्डर बनाकर लिखना चाहती हु की जेसे ही में कुछ लिखू वो क्लाउड पर अपलोड़ हो जाए फिर जहाँ चाहे जब चाहे तुम्हारे इश्क को डाऊनलोड कर सकू....में स्याहियों के रंग नहीं ज़िन्दगी के सारे रंग बदल देना चाहती हूँ ...

मैं खिड़की के पास टंगे पिंजरे में बैठे पंछी को आजाद कर देना चाहती हूँ ताकि उसे मलाल न रहे की उसे उड़ने का मौका ही नहीं मिला ...मैं उसकी घुटन को एक बार पूरी तरह ख़त्म कर देना चाहती हु ....मैं अपनी कहानी वाले लड़के को भी बंधन से आजाद कर देना चाहती हूँ और उसकी ब्याहता को भी ...चाहती हूँ की लड़के के मन में मरते दम तक ये मलाल न रहे की उसने प्रेम विवाह नहीं किया ...वो प्रेम विवाह करता तो लड़की को प्यार करता ....

मैं एक बार उस खुदा को लिखना चाहती हूँ जिसने प्रेम दिया ढेर सा प्रेम पर प्रेम करने के लिए कोई नहीं दिया ....मैं तुम्हे लिखना चाहती हु हर बार अलग केरेक्टर में जिसे तुम खुद न पहचान सको ...उन्ही बातों  उन्ही यादों के साथ ...उसी ज़हर के साथ ....हर बार नए असर के साथ ....

प्यार सच में पागल बना देता होगा न ...? पता नहीं ....

Wednesday, January 7, 2015

लोग तो लाखों है पर , क्या थोड़े से भी इंसान है ( A song)

आज कई दिन बाद ब्लॉग पर एक पोस्ट … इसे  कविता की जगह एक ऑफबीट सांग कहना ज्यादा बेहतर होगा … कोशिश कैसी है बताइयेगा …… 





























कोई हमको ये बताए क्यों ये अंधी दौड़ है 
गलियां और चौबारे नहीं लंबी सड़क पर मोड़ है
क्यों  रात में दिन जैसा हो जाने की लम्बी  होड़ है

दिल घरों में रख दिए सड़को पर सिर है पॉव है

मौत से इक कशमकश है, जिंदगी बस दांव है.…। 
इस शहर की धड़कनों में जीने/जीवन की सूखी आस है
चारों तरफ फैला समुंदर बुझती नही क्यूं प्यास है

आस  के गहरे कुएं में  खौफ खाती जान है 

लोग तो लाखों है पर ,
क्या थोड़े से भी इंसान है

चलती हुई लाशों के अंदर कसमसाती आत्मा

ढ़ूंढ़ते है हम जिसे वो चैन मिलेगा कहाँ
वो जिसे सब चाँद कहते है,दाग से काला हुआ
डर ने खामोशी को...,खामोशी ने डर पाला हुआ
चाँदी के सिक्को के दम पर 
डोलता ईमान है
लोग तो लाखों है पर ,क्या थोड़े से भी इंसान है

ज़ुल्म की सीढ़ी बनाकर चल रहा व्यापार सा 

जिसने ज्यादा खून चूसा वो बन गया अवतार सा 

आग में तपकर के वो सोना बनेगा झूठ है

दर्द की भट्टी है ,इम्तेहान लेती भूख है

एक गोली,एक खंजर,एक आदमी की वासना

चारों तरफ दहशत है कब हो जाए इनसे सामना

झूठ की है व्यूहरचना

सच रणनीती से अंजान है
लोग तो लाखों हैं पर, थोड़े से ही इंसान है..... थोड़े से ही इंसान है..... 

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी