Wednesday, August 14, 2013

आजकल नेताजी क्या कम नवाब है

अपना पसीना उनकी नज़रों में ख़राब है
आजकल नेताजी क्या कम नवाब है

उनके इत्र भी हमारी भूख पर भारी पड़े
खुशबुओं के दौर में रोटी का ख्वाब है

रेशमी शालू ,गुलाबी शाम के वो कद्रदान
आमजन की बेबसी का क्या जवाब है

मशहूर हो जाने को वो रोंदे हमारी लाश को
लाश हो जाना ही बस अपना सबाब है

रोशनाई ,जश्न उनकी जिंदगी का फलसफा
गरीबों की जिंदगी काँटों की किताब है 


 

 आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, बहुत खूब..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह बहुत सुंदर रचना,,,

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,

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Rajendra kumar said...

अतिसुन्दर ,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

umda prastuti .. shubhkamnaye :)

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब