तुम और हम दो ध्रुवो की तरह
दोनों पर ज़िन्दगी टिकी हुई
नहीं हम नदी के दो किनारे नहीं
जो साथ न होकर भी साथ ही हो
हम तो विज्ञान की पूरी किताब है
न्यूटन के क्रिया प्रतिकिया के सिद्धांत की तरह
जितनी तेज़ी से क्रिया होती है उतनी ही तेजी से प्रतिक्रिया
एक दम नपे तुले
कितने प्रेम में कितनी मुस्कराहट मिलनी है
कितने गुस्से में कितनी सहनशीलता
सब निर्धारित है
कुछ भी अचानक नहीं
कुछ भी अनिर्धारित नहीं
हम सारा भूगोल है
नदियों तालाबों की तरह अपना स्थान बदलते हुए
पर पहचान नहीं बदलते
ग्रहों की तरह घूमते हुए अपनी कक्षा में
ये जानते हुए की मिलना या दूर होना दोनों तबाही ला सकते है
हम न मिलते हैं न दूर होते हैं
एक दुसरे से बंधे हुए बस बंधे हुए ....
हम है इतिहास की झलकियाँ
कभी पुरातात्विक मूर्तियों की तरह मनमोहक
कभी जीवाश्मों की तरह गर्त में दबे हुए
हम हैं कुछ और खोजने निकले ,
कुछ और खोज लेने वाले नाविकों की तरह
प्रेम की तलाश में निकले
और प्रेम की तलाश में भटके हुए
हम धार्मिक ग्रन्थ हो गए
और हमारा प्रेम ईश्वरीय आदर्श
हम नैतिक शास्त्र की पाठशाला हो गए
जो मन ही मन निर्धारित करती रही
प्रेम केसा होना चाहिए
क्या सही है क्या गलत
क्या मर्यादा है क्या अमर्यादित
क्या दूसरों को सुखी करेगा
इन सब में उलझ कर रह गया
एक मात्र बंधन ,एकमात्र प्रेम
अब हम सब कुछ हैं
हवा ,नदी ग्रन्थ , ध्रुव ,पंछी ,मूर्ति सब कुछ
बस अब हम प्रेमी नहीं रहे ..............
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी (chitra google se )
दोनों पर ज़िन्दगी टिकी हुई
नहीं हम नदी के दो किनारे नहीं
जो साथ न होकर भी साथ ही हो
हम तो विज्ञान की पूरी किताब है
न्यूटन के क्रिया प्रतिकिया के सिद्धांत की तरह
जितनी तेज़ी से क्रिया होती है उतनी ही तेजी से प्रतिक्रिया
एक दम नपे तुले
कितने प्रेम में कितनी मुस्कराहट मिलनी है
कितने गुस्से में कितनी सहनशीलता
सब निर्धारित है
कुछ भी अचानक नहीं
कुछ भी अनिर्धारित नहीं
हम सारा भूगोल है
नदियों तालाबों की तरह अपना स्थान बदलते हुए
पर पहचान नहीं बदलते
ग्रहों की तरह घूमते हुए अपनी कक्षा में
ये जानते हुए की मिलना या दूर होना दोनों तबाही ला सकते है
हम न मिलते हैं न दूर होते हैं
एक दुसरे से बंधे हुए बस बंधे हुए ....
हम है इतिहास की झलकियाँ
कभी पुरातात्विक मूर्तियों की तरह मनमोहक
कभी जीवाश्मों की तरह गर्त में दबे हुए
हम हैं कुछ और खोजने निकले ,
कुछ और खोज लेने वाले नाविकों की तरह
प्रेम की तलाश में निकले
और प्रेम की तलाश में भटके हुए
हम धार्मिक ग्रन्थ हो गए
और हमारा प्रेम ईश्वरीय आदर्श
हम नैतिक शास्त्र की पाठशाला हो गए
जो मन ही मन निर्धारित करती रही
प्रेम केसा होना चाहिए
क्या सही है क्या गलत
क्या मर्यादा है क्या अमर्यादित
क्या दूसरों को सुखी करेगा
इन सब में उलझ कर रह गया
एक मात्र बंधन ,एकमात्र प्रेम
अब हम सब कुछ हैं
हवा ,नदी ग्रन्थ , ध्रुव ,पंछी ,मूर्ति सब कुछ
बस अब हम प्रेमी नहीं रहे ..............
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