Friday, June 29, 2012

शहीद की याद :तुम लौट आओ

इक शहीद को याद करके रोना उसका अपमान माना जाता है पर उसके लौट आने की आस तो परिवारों से कोई नहीं छीन सकता वो दुसरे मुसाफिरों की तरह ही यात्रा  पर जाता है वो लौटकर आए ना आए उसके अपने यादों को आने से नहीं रोक सकते....

जहाँ भी गए हो चले आओ अब 
की वो उम्मीद जो जाते समय 
मेरे आँचल में रखकर चले गए थे
वो तुम्हारे इंतज़ार में मुरझाने लगी है

वो मुस्कराहट जो तुम जाते जाते
मेरे होंठों की खूंटी पर टांग गए थे
उसे ना जाने कहा से आकर 
अकुलाहट ने जकड लिया है


तुम्हारी सफल यात्रा के लिए 
भगवान को चढ़ाया प्रसाद 
फीका सा लगने लगा है 
शायद भोग लगा लिया उसने भी 

लौट आओ की तुम जो दरवाज़े पर 
पुनर्मिलन की आस छोड़  गए हो
वो भी तुम्हारे पिताजी की तरह 
इधर से उधर चक्कर  लगा रही है

अपनी माँ की आँखों में जो 
पुत्रमोह छोड़ गए हो तुम
वो कई दिनों की अधूरी नींद के कारण
लाल डोरों में बदल गया है 

चले आओ की तुम्हारी विजय की खबर
वीरगति की खबर से ज्यादा सुख देगी 
तुम्हारी वीरगति सम्मान दे सकती है 
पर हम सबकी जिंदगी भर की नींद नहीं 
तुम लौट आओ

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Thursday, June 28, 2012

इक रात अमावस है फिर चाँद का आना है

ढलती हुई हर रात का बस इतना फ़साना है 
सारी दीवारें तोड़कर उसे कल फिर चली आना है..
रोकेगा कोई कितना चाहत की चांदनी को 
इक रात अमावस है फिर चाँद का आना है 

पाक मोहब्बत की तस्वीर निराली है 
इक जज़्बात है दिल में, सामने सारा ज़माना है 
तुमसे लगाकर दिल बस यही दर्द है मुसाफिर
ना तेरा है कोई ठोर ना मेरा ही ठिकाना है

बस्ती जलाके दिल की वो खुश है मीनारों में
सितमगर क्या जाने उसे भी खाक हो जाना है
कल जिसने दिया धोखा वो आज सामने है 
उसे माफ़ कर दिया है दिल कितना दीवाना है 

वो जिसके तसव्वुर में वजूद खो दिया था
जब रूबरू  हुआ तो लगता है बेगाना है 
उसका नहीं कुसूर ,ये जुर्म में हमारा 
उसने अपना बनाना चाहा हमें उसका हो जाना है 

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Thursday, June 21, 2012

मुझे जबसे तुमसे प्रेम हुआ बस तेरा चेहरा बुनती हू

एक ही धागा, इक ही रंगत ,इक ही सांचा चुनती हूँ
मुझे जबसे तुमसे प्रेम हुआ ,बस तेरा चेहरा बुनती हू

तुम्हे उलझा दू ,तुम्हे सुलझा लू
ज़रा ठुकराकर तुम्हे अपना लू
सारे गुण औगुन बेकार हुए
बस तेरे सब गुण गुणती हू
मुझे जबसे तुमसे प्रेम हुआ बस तेरा चेहरा बुनती हूँ


तुम्हे दूर करू थोडा पास करू
थोड़ी शंका थोडा विश्वास करू
मेरे जीवन का आधार तुम्ही
बस तुमसे तुम्हारी आस करू
हर दिन अपने अंतर्मन से तेरी आवाजें सुनती हू
मुझे जबसे तुमसे प्रेम हुआ बस तेरा चेहरा बुनती हू


मेरे स्वप्न महल का उच्च शिखर
मेरे अंधियारों की श्वेत डगर
हर रस्ता तुम तक एसे जाए
जैसे अंतर्मन तक जाए शब्द प्रखर
जन्मों जन्मो का साथ प्रिये हर जनम में तेरी बनती हू
मुझे जबसे तुमसे प्रेम हुआ बस तेरा चेहरा बुनती हू...

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