Monday, March 12, 2012

मुझे खुद पता नहीं

कई दिनों कुछ अच्छा पढ़ा नहीं और अच्छा लिखा भी नहीं कुछ टुकड़े हैं जो इकट्ठे करके पोस्ट कर रही हु.....
१)मैं तेरा आशिक बना इसमें गज़ब कुछ भी नहीं
तुम मेरी मुरीद बन जाओ तो गज़ब की बात है
तुम मेरे अलफ़ाज़ सुनकर मुस्कुरा दो क्या मज़ा
मेरे ख़त को बेइन्तेहाँ चाहो गज़ब की बात है
2) बस मोहब्बत में ही तो सारा जहाँ हमदम नहीं होता
बरसकर जो भीगा दे हर बार वो सावन नहीं होता
न यूँ जख्म खोल कर घुमो भरे बाज़ार में लोगो
यहाँ हर शख्स के हाथ में मरहम नहीं होता
3)शिव तो मन में भी बसे है पर शिवाला देख लू
कितना गहरा असर करेगा विष का प्याला देख लू
जा रहा हु छोड़कर उम्र भर के लिए तुझे
तू ज़रा सा सामने आ मैं नज़ारा देख लू

4)मेरे तेरे ख्वाबों की तस्वीर बनी जाती हु
तुझे लगता है मैं ज़ंजीर बनी जाती हु
ऐतबार रख मुझे अपनी कमजोरी न समझ
मै तेरे तरकश का कोई तीर बनी जाती हु

5) कहाँ ले जाएँगे जज़्बात मुझे खुद पता नहीं
बैचैनी है क्यों दिन रात मुझे खुद पता नहीं
लोग कहते हैं मैं तेरे प्यार में पागल हु
क्या सच में है येही बात ? मुझे खुद पता नहीं

11 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

चौथा वाला बहुत अच्छा है।

सादर

ANULATA RAJ NAIR said...

सुन्दर....
सभी अच्छे....
कभी बिखरे ख्यालों को समेटना भी अच्छा है...
:-)

सदा said...

वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सभी रचनाओं के भाव सुंदर लगे ,...

RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...

Pallavi saxena said...

यही तो विडम्बना है कि अक्सर हमें हमारे ख्यालों के बारे में खुद ही कोई जानकारी नहीं होती और हम बस जिये जाते है एक अनदेखे से ,अंजाने से ख्याल के जरिये...मुझे अंतिम पंक्तियाँ सबसे जायदा पसंद आयी।

रविकर said...

अच्छा,
अच्छा अच्छा भी नहीं अच्छा लगे है |
यह तो मीठे अंगूर का गुच्छा लगे है ||

dr.mahendrag said...

सभी रचनाये अच्छी है .बिखरों को समेत कर,संकलित करना भी एक कला है.

Shalini kaushik said...

bahut sundar prastuti.ye vanshvad nahin hain kya

प्रवीण पाण्डेय said...

बस यही सब पता करने के लिये जीवन जी रहे हैं हम सब..

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर ख्यालात्।

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूबसूरत अहसास